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Showing posts from October, 2023

THE WISE KEEPS THE MIND STRAIGHT LIKE AN ARROWS SHAFT ॥(3.1 & 3.2) Verses 33 & 34॥

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THE WISE KEEPS THE MIND STRAIGHT LIKE AN ARROWS SHAFT ॥(3.1 & 3.2) Verses 33 & 34॥   The Story of Venerable Méghiya –Once, while residing on the Calika Mountain, the Buddha spoke these verses, with reference to Venerable Méghiya. Once, by reason of attachment to the three evil thoughts, lust, hatred, delusion, Venerable Méghiya was unable to practice meditation in this mango-grove and returned to the Buddha.  The Buddha said to him, “Méghiya, you committed a grievous fault. I asked you to remain, saying to you, ‘I am now alone, Méghiya. Just wait until some other monk appears.’ But despite my request, you went your way. A monk should never leave me alone and go his way when I ask him to re- main. A monk should never be controlled thus by his thoughts. As for thoughts, they are flighty, and a man ought always to keep them under his own control.” At the conclusion of the stanzas Méghiya was established in the fruit of conversion and many other monks in the fruits of t

चित्त मुक्ति के लिए जल बिन मछली के सम्मान तड़पता है: भिक्षु मेघिय की कथा (भाग -2)

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चित्त मुक्ति के लिए जल बिन मछली के सम्मान तड़पता है: भिक्षु मेघिय की कथा (भाग -2) तथागत बुद्ध से मनोरम उद्यान में जाकर ध्यान करने की अनुमति पाकर भिक्षु मेघिय बहुत खुश हुआ, क्योंकि उसकी इच्छा पूरी हो गई।वह तुरंत विहार से निकला और जल्‍द ही उस मनोरम आम्रवाटिका में पहुँच गया और एक वृक्ष के नीचे आसन लगाकर ध्यान-साधना में बैठ गया। मगर यह क्या! उसका मन ध्यान-साधना लगता ही ना था बल्कि भिक्षु का मन बहुत ज़ोरों से इधर-उधर भटकने लगा। भिक्षु मेघीय, अपने मन को शांत करके केन्द्रित करने में सफल नहीं हुआ। पूरा दिन इसी आन्तरिक द्वंद्व में बीत गया मगर उसका मन शांत नहीं हुआ। शाम होने पर वह बौद्ध-विहार वापस आया और भगवान बुद्ध के सम्मुख प्रकट होकर और उन्हें बताया कि किस तरह वह पूरे दिन अपने चित्त को एकाग्र करने की चेष्टा करता रहा मगर अंत तक पूर्णतः असफल रहा।  तब शाक्य-मुनि ने उसे समझाया, “मेघिय! वहाँ जाकर तुमने बहुत ही गलत काम किया था। मैं तुम्हें कहता रहा कि अभी उस उद्यान में मत जाओ, पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुम्हारा मन इसीलिए एकाग्र नहीं हो सका क्योंकि वह उद्यान के राग से लिप्त हो गया था।

A Mind Well Guarded and Restrained Brings Happiness. Story of An Unknown Monk. ॥(3.3): 35॥

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A Mind Well Guarded and Restrained Brings Happiness. Story of An Unknown Monk. ॥(3.3): 35॥ Tathagata Buddha was once residing at the Jétavana Monastery. There he narrated the following story about benefits of the well guarded mind with reference to an unknown monk.  Once some sixty monks went to village situated at the foot of a mountain called Matika. Their mother of the village headman, Matikamata, offered them alms, good foods and shelter for their stay during the entire rainy season. One day, she requested monks to teach her the technique of meditation. Monks readily taught her, how to meditate on the 32-constituents of the body leading to the "awareness of the decay and dissolution of the body". Matikamata practiced with diligence and attained the three maggas (paths) and phalas (fruits) together with the divine analytical insight and mundane supernormal powers, earlier than many monks did.  Thereafter, she saw with her divine power of sight (dibbacakkhu) tha

The Buddha in the “Satipatthana Sutta” “The Hymn of the Awakening of Consciousness”, advices to practice 4 types of mindfulness.

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The Buddha in the “Satipatthana Sutta” “The Hymn of the Awakening of Consciousness”, advices to practice 4 types of mindfulness. 1. Kayanupassana (constant observation of the body) 2. Vedananupassana (constant observation of sensation) 3. Cittanupassana (constant observation of the mind) 4. Dhammanupassana (constant observation of the contents of the mind) आप सभी का मंगल हो

॥॥32॥॥ प्रमादी का पतन असंभव है –निगाम तिस्स स्थविर की कथा

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॥॥32॥॥ प्रमादी का पतन असंभव है –निगाम तिस्स स्थविर की कथा  निगाम तिस्स नामक एक स्थविर का जन्म श्रावस्ती के पास के एक क़स्बे में हुआ था। जब वह बड़ा हुआ तब उसने प्रव्॒ज्या ग्रहण कर ली और भिक्षु का जीवन जीने लगा। वह भोजन दान के लिए बड़े-बड़े आयोजनों में नहीं जाता था बल्कि पास के गाँवों में जाता था, जहां के निवासी उसे जानते भी थे, इस तरह भिक्षाटन में जो कुछ भी रूखा-सूखा मिल जाता उसे खा लेता और पुनः साधना में लग जाता। अन्य भिक्षु, अक्सर भिक्षु निगाम तिस्स के विषय में चर्चा किया करते और कहते कि इस भिक्षु ने घर-द्वार तो छोड़ दिया है पर उसका मोह अभी समाप्त नहीं हुआ है।वह हमेशा अपने सगे-सम्बन्धियों से ही भोजन-दान लेता है।भिक्षुओं ने इस विषय में तिस्स की तथागत बुद्ध से शिकायत की। तब तथागत बुद्ध ने तिस्स को बुलाकर पूछा, "मुझे शिकायत मिली है कि तुम अपने सगे-सम्बन्धियों के यहाँ आते-जाते हो।क्या यह सही है?" तिस्स ने तथागत बुद्ध को प्रणाम किया और स्पष्ट किया, "भगवन !यह सच है कि मैं बार-बार अपने गाँव जाता हूँ।लेकिन, मैं ऐसा सिर्फ इसलिए करता हूँ कि भिक्षा मिल जाए।जैसे ही भिक्

The main cause of all bondage is ignorance. Man is not wicked by his own nature—not at all.

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The main cause of all bondage is ignorance. Man is not wicked by his own nature—not at all. His nature is pure, perfectly holy. Each man is divine. Each man that you see is a God by his very nature. This nature is covered by ignorance, and it is ignorance that binds us down. Ignorance is the cause of all misery. Ignorance is the cause of all wickedness; and knowledge will make the world good. Knowledge will remove all misery. Knowledge will make us free. This is the idea of Jnāna-Yoga: knowledge will make us free! What knowledge? Chemistry? Physics? Astronomy? Geology? They help us a little, just a little. But the chief knowledge is that of your own nature. “Know thyself.” You must know what you are, what your real nature is. You must become conscious of that infinite nature within. Then your bondages will burst. - Swami Vivekananda

भगवान बुद्ध

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Today Hindi version: एक बार लिच्छवी का एक महाली नाम का युवा वैशाली के कूटगार विहार में भगवान बुद्ध का प्रवचन सुनने गया। वहाँ बुद्ध, माघ (इन्द्र) पर प्रवचन दे रहे थे। अपने प्रवचन में बुद्ध ने माघ के बहुत से गुणों का भव्य वर्णन किया। लिच्छवी का युवा महाली प्रवचन सुनकर सोचा कि निश्चय ही बुद्ध, माघ को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं और उससे उनकी भेंट हो चुकी है। अन्यथा वे इतने अच्छे ढंग से माघ के विषय में जानकारी नहीं दे पाते, मगर वह इस बारे में सुनिश्चित नहीं था इसलिए अपनी शंका-समाधान के लिए उसने बुद्ध से प्रश्न पूछा।  युवा महाली के प्रश्न के उत्तरमें शाक्य मुनि बुद्ध कहा, “मैं माघ को अच्छी तरह जानता हूँ।मैं यह भी जानता हूँ कि वह माघ राजा कैसे बना और फिर देवताओं का राजा किस प्रकार बना।" उन्होंने माघ के पूर्वजन्म की कहानी सुनाते हुए कहा कि माघ अपने पूर्वजन्म में मचाला गाँव में मेघा नाम से जन्मा था। युवक मेघा, अपने मित्रों के साथ भवन एवं सड़क निर्माण का काम करता था। उसने प्रण लिया था कि वह जीवनपर्यन्त शील के सात नियमों का कड़ाई से पालन करेगा ये सात नियम इस प्रकार से थे :- (१) अपने माता-पिता

The Mindful-one, is way ahead of others.

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धम्मपद सुत्त 29: कहानी का शीर्षक: अप्रमादी (मेहनती) एवं मन से सावधान व्यक्ति सभी से आगे निकल जायेगा (English Translation) Verse 29: Title of the story: The Mindful-one, is way ahead of others.  परिचय-यह सुत्त "सम्म्यक संबुद्ध" द्वारा सुवत्थी (श्रावस्ती) के जेतवन मठ में "दो साथी भिक्षु-मित्रों की कहानी" के संबंध में कही गई थी। (English Translation) Introduction -This sutta was spoken by "The Self-Enlightened One" at the Jetvana monastery at Suvatthi in relation to "The story of two companion monk friends". दो साथी भिक्षु-मित्रों की कहानी: एक बार दो युवा मित्रों ने प्रव्रज्या ली और भिक्षु हो गये जंगल में जाकर अपने-अपने ढंग से ध्यान-साधना करने लगे। उनमें से एक युवा आलसी था और दूसरा उद्यमी (मेहनती)। आलसी साधक लकड़ियाँ इकट्ठी कर उन्हें जला लेता और युवक श्रमणों से गप्पें लड़ाते हुए अपना पहला प्रहर बिता देता था। दूसरी ओर  मेहनती और सावधान युवा भिक्षु अपना अधिक समय साधना में लगाता और यह जानते हुए कि आलसी और असावधान व्यक्ति के द्वारा धर्म के न

स्थविर महाकाश्यप की कथा ||28||

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 स्थविर महाकाश्यप की कथा ||28||  संदर्भ: श्रावस्ती नगर के जेतवन में वर्षावास करते समय, तथागत ने अपने परम शिष्यों में से एक स्थविर महाकाश्यप* के विषय में कहा -एक समय वे राजगृह (राजगीर, बिहार) के पास पिप्पली गुहा में रहकर साधना किया करते थे।एक दिन उनके मन में आया कि क्‍यों न अपनी अलौकिक दृष्टि से अपने और दूसरे लोगों के पूर्वजन्मों को देखा जाए। इसलिए उन्होंने भिक्षा चारिका समाप्त होने पर भोजन कर्म से निवृत्त होने के बाद अपना ध्यान प्रकाश बढ़ाकर अपनी दिव्यदृष्टि द्वारा जरा देखूँ कि मेरा शिष्य महाकाश्यप इस समय क्‍या कर रहा है अपने दिव्य-नेत्रों से उन्होंने देखा कि वह तो पिप्पली गुफा में बैठा प्राणियों के जन्म-मरण जानने की चेष्टा करते हुए अपना समय गँवा रहा है।तब तथागत बुद्ध अपने ऋद्धि के प्रभाव से उसके ध्यान में प्रकट हुए मानों वे उसके सामने बैठे हुए हों और बोले, “आयुष्मान्‌ काश्यप! प्राणियों के जन्म और मरण की श्रृंखला अनन्त है और अपनी बुद्धि से तुम उन्हें गिन नहीं पाओगे। अतः तुम्हारे लिए उचित नहीं है कि तुम उन्हें गिनने में लगे रहो। गणना करना तुम्हारा काम नहीं है। प्

स्थविर महाकाश्यप की कथा ||28||

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 स्थविर महाकाश्यप की कथा ||28||  संदर्भ: श्रावस्ती नगर के जेतवन में वर्षावास करते समय, तथागत ने अपने परम शिष्यों में से एक स्थविर महाकाश्यप* के विषय में कहा -एक समय वे राजगृह (राजगीर, बिहार) के पास पिप्पली गुहा में रहकर साधना किया करते थे।एक दिन उनके मन में आया कि क्‍यों न अपनी अलौकिक दृष्टि से अपने और दूसरे लोगों के पूर्वजन्मों को देखा जाए। इसलिए उन्होंने भिक्षा चारिका समाप्त होने पर भोजन कर्म से निवृत्त होने के बाद अपना ध्यान प्रकाश बढ़ाकर अपनी दिव्यदृष्टि द्वारा जरा देखूँ कि मेरा शिष्य महाकाश्यप इस समय क्‍या कर रहा है अपने दिव्य-नेत्रों से उन्होंने देखा कि वह तो पिप्पली गुफा में बैठा प्राणियों के जन्म-मरण जानने की चेष्टा करते हुए अपना समय गँवा रहा है।तब तथागत बुद्ध अपने ऋद्धि के प्रभाव से उसके ध्यान में प्रकट हुए मानों वे उसके सामने बैठे हुए हों और बोले, “आयुष्मान्‌ काश्यप! प्राणियों के जन्म और मरण की श्रृंखला अनन्त है और अपनी बुद्धि से तुम उन्हें गिन नहीं पाओगे। अतः तुम्हारे लिए उचित नहीं है कि तुम उन्हें गिनने में लगे रहो। गणना करना तुम्हारा काम नहीं है। प्

(2) Sutta: téjhayino satatika niccam dalhaparakkamaphusanti dhira nibbanam yogakkhémam anuttaram. (23:2)Translation: They (hard-working, wise and excellent men) meditate persistently, constantly. They firmly strive, remain steadfast to reach and attain Nibbana.

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Sutta: téjhayino satatika niccam dalhaparakkama phusanti dhira nibbanam yogakkhémam anuttaram. (23:2) Translation: They (hard-working, wise and excellent men) meditate persistently, constantly. They firmly strive, remain steadfast to reach and attain Nibbana.

(अप्पमाद वग्ग) ज्ञानी (पंडित) पुरुष अप्रमाद की विशेषता को समझते हुए सदैव आर्य आचरण में रहकर अप्रमाद में आनन्दित रहते हैं।

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 (अप्पमाद वग्ग) ज्ञानी (पंडित) पुरुष अप्रमाद की विशेषता को समझते हुए सदैव आर्य आचरण में  रहकर अप्रमाद में आनन्दित रहते हैं।

माँ महिषासुरमर्दिनी ऐरवातेश्वर मंदिर, तमिलनाडु, भारत 🇮🇳

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माँ महिषासुरमर्दिनी  ऐरवातेश्वर मंदिर, तमिलनाडु, भारत 🇮🇳 ऐरावतेश्वर मंदिर, द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल घोषित किया गया है, इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है।🙏

Unlocking Vitamin D Deficiency: Causes, Symptoms, and Solutions

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Vitamin D deficiency is a common health condition that affects a significant portion of the population worldwide. This essential nutrient plays a vital role in various bodily functions, and its deficiency can lead to a range of health problems. Let us deep dive into this here in this blog.Vitamin D is a fat-soluble vitamin when UV rays hit the skin and trigger its production. With age, people tend to spend less time in the sun and Vit-D deficiencies become more common. An exogenous consumption of Vit- D is then required for our body. They are mostly found in butter and fortified foods.Vitamin- D obtained from sunlight or through intake needs to be converted into its most active form, Vitamin D3. It happens in our liver and kidneys. Being a fat-soluble vitamin, it is finally stored in our adipose tissue and liver.People can develop vitamin D deficiency when usual intakes are lower over time than recommended levels, exposure to sunlight is limited, the kidneys cannot convert Vit-D to its

मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है ।सभी (अच्छे-बुरे) धर्म, मन में ही उत्पन्न होते हैं।यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है, तब दु:ख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार से बैलगाड़ी का पहिया, बैल के खुरों के निशान का पीछा करता है। सम्यक् संबुद्ध सिद्धार्थ गौतम, धम्मपद, यमकवग्ग -१

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 मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है ।सभी (अच्छे-बुरे) धर्म, मन में ही उत्पन्न होते हैं।यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है, तब दु:ख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार से बैलगाड़ी का पहिया, बैल के खुरों  के निशान का पीछा करता है। सम्यक् संबुद्ध सिद्धार्थ गौतम, धम्मपद, यमकवग्ग -१

नादान लोग नहीं समझते कि सभी की भाँति, उन्हें भी एक न एक दिन इस संसार से जाना ही होगा, जो इस बात को समझ जाते हैं, उनके मन के क्लेश हमेशा के लिए शांत हो जाते हैं - बुद्ध

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 नादान लोग नहीं समझते कि सभी की भाँति, उन्हें भी एक न एक दिन इस संसार से जाना ही होगा, जो इस बात को समझ जाते हैं, उनके मन के क्लेश हमेशा के लिए शांत हो जाते हैं - बुद्ध

जिस व्यक्ति ने अपने मन को सभी शीलों का पालन कर स्वच्छ कर लिया है सत्य और संयम से युक्त वह व्यक्ति, काषाय-वस्त्र (चीवर) धारण करने का अधिकारी हो जाता है।

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जिस व्यक्ति ने अपने मन को सभी शीलों का पालन कर स्वच्छ कर लिया है सत्य और संयम से युक्त वह व्यक्ति, काषाय-वस्त्र (चीवर) धारण करने का अधिकारी हो जाता है।

जो व्यक्ति काम और भोग से लिप्त नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन होती हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान रहता है, जो आलस्य नहीं करता, “मार” (Demon of senses) उसे ठीक उसी प्रकार नहीं हिला पाता जैसे वायु किसी चट्टान का कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

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 जो व्यक्ति काम और भोग से लिप्त नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन होती हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान रहता है, जो आलस्य नहीं करता, “मार” (Demon of senses) उसे ठीक उसी प्रकार नहीं हिला पाता जैसे वायु किसी चट्टान का कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

.जो सार (मूल-तत्व या अंतिम सत्य) को सार और नि:सार (झूठ या निरर्थक) को नि:सार समझ लेता है ऐसे शुद्ध चिंतन (सम्यक दृष्टि) वाले व्यक्ति को सार (मूल-तत्व या अंतिम सत्य) मिल ही जाता है

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जो सार (मूल-तत्व या अंतिम सत्य) को सार और नि:सार (झूठ या निरर्थक) को नि:सार समझ लेता है ऐसे शुद्ध चिंतन (सम्यक दृष्टि) वाले व्यक्ति को सार (मूल-तत्व या अंतिम सत्य) मिल ही जाता है

जिस तरह से ठीक तरह से बनायी छत से घर में वर्षा का पानी नहीं घुस पाता है, ठीक उसी प्रकार से “संयमित मन” में इंद्रियों से उत्पन्न राग द्वेष के अकुशल विचार नहीं घुस पाते।

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जिस तरह से ठीक तरह से बनायी छत से घर में वर्षा का पानी नहीं घुस पाता है, ठीक उसी प्रकार से “संयमित मन” में इंद्रियों से उत्पन्न राग द्वेष के अकुशल विचार नहीं घुस पाते।

धर्म ग्रंथों का चाहे थोड़ा ही पाठ करें लेकिन राग, द्वेष तथा मोह से रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करने वाला बुद्धिमान तथा भोगों (इंद्रिय सुख:) के पीछे न दौड़ने वाला अनासक्त व्यक्ति ही श्रमणत्व (संयम के साथ पुरुषार्थ करने वाला) पद का अधिकारी होता है।

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 धर्म ग्रंथों का चाहे थोड़ा ही पाठ करें लेकिन राग, द्वेष तथा मोह से रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करने वाला बुद्धिमान तथा भोगों (इंद्रिय सुख:) के पीछे न दौड़ने वाला अनासक्त व्यक्ति ही श्रमणत्व (संयम के साथ पुरुषार्थ करने वाला) पद का अधिकारी होता है।

(अप्पमाद वग्ग) जागरूक और मेहनती (अप्रमाद) जीवन जीने वाले मनुष्य को निर्वाण का अमृतपद मिलता है। आलस्य जैसी बेहोशी (प्रमादी) जीवन जीने वाले को मृत्यु का पद मिलता है। अप्रमादी मरते नहीं और प्रमादी मनुष्य तो जीते हुए भी मरे-समान होते हैं।

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(अप्पमाद वग्ग) जागरूक और मेहनती (अप्रमाद) जीवन जीने वाले मनुष्य को निर्वाण का अमृतपद मिलता है। आलस्य जैसी बेहोशी (प्रमादी) जीवन जीने वाले को मृत्यु का पद मिलता है। अप्रमादी मरते नहीं और प्रमादी मनुष्य तो जीते हुए भी मरे-समान होते हैं।

.पुण्य करने और पाप कर्म से दूर रहने वाला व्यक्ति, इस लोक में और परलोक दोनों ही जगहों में अपने पुण्य कर्मों के अच्छे फलों को पाकर मुदित (देवीय आनंद) की अवस्था में रहता है।

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 16. पुण्य करने और पाप कर्म से दूर रहने वाला व्यक्ति, इस लोक में और परलोक दोनों ही जगहों में अपने पुण्य कर्मों के अच्छे फलों को पाकर मुदित (देवीय  आनंद) की अवस्था में रहता है।

Major environmental issues caused by contemporary climate change in the Arctic region.

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Major environmental issues caused by contemporary climate change in the Arctic region range from the well-known, such as the loss of sea ice or melting of the Greenland ice sheet, to more obscure, but deeply significant issues, such as permafrost thaw, social consequences for locals and the geopolitical ramifications of these changes. The Arctic is likely to be especially affected by climate change because of the high projected rate of regional warming and associated impacts. Temperature projections for the Arctic region were assessed in 2007: These suggested already averaged warming of about 2 °C to 9 °C by the year 2100. The range reflects different projections made by different climate models, run with different forcing scenarios. Radiative forcing is a measure of the effect of natural and human activities on the climate. Different forcing scenarios reflect, for example, different projections of future human greenhouse gas emissions. These effects are wide-ranging and c

Inflammation: Friend or Foe?

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Our bodies are essentially mobile chemical bioreactors. There are a lot of processes going on inside our bodies to preserve life as we know it. One of the processes, inflammation, aids our bodies in protecting ourselves from injury. It is like our own personal security system. When the body detects an intruder, like a foreign body(splinters, scrape through an object), a pathogen, or an irritant, it initiates a biological response to try to eliminate it. Our immune system dispatches an army of white blood cells to surround and protect the affected area, creating noticeable redness and swelling. The process works similarly if you have an infection like the flu or pneumonia. Inflammation is necessary for survival. Without it, injuries could fester and simple infections can become fatal. Inflammation can be either acute (short-term)or chronic (long-term). Acute inflammation goes away in a matter of hours or days. It is the body’s reaction to sudden damage, such as cuts, scrapes, or pathoge

Every year the Federal Partners in Bullying Prevention hosts a summit to highlight its work to prevent cyberbullying, especially in schools and amongst students, in efforts to become responsible digital citizens.

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Every year the Federal Partners in Bullying Prevention hosts a summit to highlight its work to prevent cyberbullying, especially in schools and amongst students, in efforts to become responsible digital citizens. The term digital citizen is used with different meanings. According to the definition provided by Karen Mossberger, one of the authors of Digital Citizenship: The Internet, Society, and Participation, digital citizens are "those who use the internet regularly and effectively." In this sense a digital citizen is a person using information technology (IT) in order to engage in society, politics, and government. More recent elaborations of the concept define digital citizenship as the self-enactment of people’s role in society through the use of digital technologies, stressing the empowering and democratizing characteristics of the citizenship idea. These theories aim at taking into account the ever increasing datafication of contemporary societies (as can b

In this article, you will learn how uric acid wreaks havoc on our bodies if left unchecked.

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In this article, you will learn how uric acid wreaks havoc on our bodies if left unchecked. You are here, reading this article, aren’t you? That means you may have a clue as to how uric acid damages our bodies, or, God forbid, you or your loved ones might be facing the repercussions. Uric acid has been in the shadows for far too long. Not many people know about this. That makes it all the more important to talk about it. Uric acid comes from only three sources: fructose, alcohol, and purines. While you may know about fructose and alcohol, purines might be a new term for you. Let me help you understand it. Purines are natural organic substances found in our body where they serve important functions and help form our body’s core genetic material- DNA and RNA. They affect blood flow, heart function, inflammatory and immune responses, the experience of pain, digestive function, and the absorption of nutrients. Some purines even act as neurotransmitters and antioxidants. Now, a question may

Why Mahatma Gandhi never got the Nobel Peace Prize despite being nominated 12 times

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Why Mahatma Gandhi never got the Nobel Peace Prize despite being nominated 12 times Gandhi Jayanti: In an article, aptly titled, ‘Mahatma Gandhi, the missing laureate’ the Nobel Prize panel explained what led to its contentious decision. Mahatma Gandhi, a man whose name is most widely associated with peace, never received the Nobel Peace Prize Gandhi was nominated 12 times for the peace prize, the last time posthumously The Nobel Prize, in 1999, had explained why the award was never conferred on Gandhi Fifty years after Mahatma Gandhi was assassinated in 1948, the Nobel Prize panel published an article explaining why the Father of the Nation never received the peace prize. In retrospect, it might seem like a folly like no other, but the Norwegian Nobel Committee had come close to bestowing the award upon Mahatma Gandhi. Gandhi’s principles of non-violence and peace are widely acknowledged – not only in India but globally. So perhaps, looking back, it might seem strange that the man who