मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है ।सभी (अच्छे-बुरे) धर्म, मन में ही उत्पन्न होते हैं।यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है, तब दु:ख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार से बैलगाड़ी का पहिया, बैल के खुरों के निशान का पीछा करता है। सम्यक् संबुद्ध सिद्धार्थ गौतम, धम्मपद, यमकवग्ग -१

 मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है ।सभी (अच्छे-बुरे) धर्म, मन में ही उत्पन्न होते हैं।यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है, तब दु:ख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार से बैलगाड़ी का पहिया, बैल के खुरों  के निशान का पीछा करता है। सम्यक् संबुद्ध सिद्धार्थ गौतम, धम्मपद, यमकवग्ग -१

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