जो व्यक्ति काम और भोग से लिप्त नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन होती हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान रहता है, जो आलस्य नहीं करता, “मार” (Demon of senses) उसे ठीक उसी प्रकार नहीं हिला पाता जैसे वायु किसी चट्टान का कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

 जो व्यक्ति काम और भोग से लिप्त नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन होती हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान रहता है, जो आलस्य नहीं करता, “मार” (Demon of senses) उसे ठीक उसी प्रकार नहीं हिला पाता जैसे वायु किसी चट्टान का कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

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