धर्म ग्रंथों का चाहे थोड़ा ही पाठ करें लेकिन राग, द्वेष तथा मोह से रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करने वाला बुद्धिमान तथा भोगों (इंद्रिय सुख:) के पीछे न दौड़ने वाला अनासक्त व्यक्ति ही श्रमणत्व (संयम के साथ पुरुषार्थ करने वाला) पद का अधिकारी होता है।

 धर्म ग्रंथों का चाहे थोड़ा ही पाठ करें लेकिन राग, द्वेष तथा मोह से रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करने वाला बुद्धिमान तथा भोगों (इंद्रिय सुख:) के पीछे न दौड़ने वाला अनासक्त व्यक्ति ही श्रमणत्व (संयम के साथ पुरुषार्थ करने वाला) पद का अधिकारी होता है।

Comments

Popular posts from this blog

Remembering Sir Ratan Tata: A Legacy of Leadership and Philanthropy

|| Oldest Known Temple Of Hanuman Ji, Untold Ramayana, How Hanuman Ji Is Connected with the Panch Mahabhoota? ||

How The Buddha Spent Seven Weeks After Attaining Enlightenment?