मन सभी धर्मों का प्रधान है।

 मन "सभी धर्मो का प्रधान" है। पुण्य और पाप सभी धर्म मन से ही उत्पन्न होते हैं। यदि कोई प्रसन्न मन से कुछ कहता है या करता है तो उसका फल सुखदायी होता है और  तब जिस प्रकार मनुष्य की छाया उसका कभी साथ नहीं छोड़ती, सुख भी उसका पीछा उसी प्रकार नहीं छोड़ता। धम्मपद यमकवग्ग -2

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