भिक्षु संघरक्खित के भांजे भागिनेय्य की कथा ||Verse 3.5:37||


भिक्षु संघरक्खित के भांजे भागिनेय्य की कथा ||Verse 3.5:37||

भिक्षु संघरक्खित भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्यों में से एक थे। एक बार, उनकी बहन को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। चूँकि वह भिक्षु संघरक्खित का भाँजा था अतः: उसका नाम भागिनेय्य संघरक्खित रखा गया। बड़े होने पर भांजा सामनेर भागिनेय्य भी भिक्षु संघ में शामिल हो गया। 

एक बार सामनेर भागिनेय्य, वर्षा-वास के लिए किसी गाँव में रुका। वहाँ के किसी दानी ग्रामवासी ने उसे दानस्वरूप दो चीवर भेंट में दिये। सामनेर भागिनेय्य ने एक चीवर स्वयं के लिए लिए रख लिया और दूसरा चीवर संभालकर अपने मामा भिक्षु संघरक्खित को देने का विचार किया। तीन महीने बाद, वर्षाकाल समाप्त होने के बाद, सामनेर भागिनेय्य अपने मामा भिक्षु संघरक्खित के पास जेतवन विहार आया और अपने मामाजी को चीवर को भेंट में प्रदान किया मगर मामा भिक्षु संघरक्खित ने उसे लेने से यह कहकर मना कर दिया कि उनके पास पहले से ही पर्याप्त चीवर हैं तथा उन्हें और अधिक चीवर की आवश्यकता नहीं है। सामनेर भागिनेय्य ने बहुत प्रार्थना करने पर भी उन्होंने सामनेर भागिनेय्य से चीवर नहीं लिया। 

एक दिन सामनेर भागिनेय्य ताड़ के पंखे से अपने मामा भंते संघरक्खित को पंखा झल रहा था। मगर उसका मन यह सोच कर लगातार दुःखी था कि मामा ने उससे चीवर नहीं लिया। यह सोचकर, उसके मन में उल्टे-सीधे विचार आने लगे। वह सोचने लगा कि क्‍यों न वह भिक्षु-संघ को ही छोड़, उस बच्चे हुए चीवर को बेच दे। फिर उस पैसे से एक बकरी खरीद ले। जब बकरी से बच्चे होंगे तो वह उन्हें बेचकर बहुत सारा धन पा लेगा। धनवान होने से उसका विवाह भी हो जाएगा और जब उसे एक पुत्र भी होगा। तब वे सभी अपनी बेलगाड़ी में बैठकर मामाजी से मिलने उनके विहार जायेंगे। गाड़ी में आते समय वह अपनी पत्नी से कहेगा कि वह बच्चे को उसे सौंप दे मगर उसकी पत्नी उसे गाड़ी चलाने पर ध्यान देने के लिए कहकर बच्चे को नहीं देगी तो वह पत्नी से बच्चा को छीन लेगा और इस छीना-छपटी में बच्चा गाड़ी से गिरेगा और गाड़ी का पहिया बच्चे के ऊपर से निकल जाएगा। इस पर उसको अपनी पत्नी पर बहुत क्रोध आ जाएगा तो वह पत्नी को पंखे से ही  मारेगा।ऐसा सोचते हुए उसने पंखे से मामा को दे मारा।

मामा भंते संघरक्खित, अपने भांजे के मन की दशा को जानकर बोले, "शिष्य! तुमने विचारों में अपनी स्त्री को मारते हुए मुझे ही मार दिया है" भांजा सामनेर भागिनेय्य मामा भंते संघरक्खित से अपने मन आते विचारों पढ़ लेने के कारण बहुत घबरा गया और वहाँ से भाग गया। वहाँ उपस्थित कुछ युवा भिक्षु उसे अपने साथ पकड़कर तथागत बुद्ध के पास ले गए और वहाँ जाकर उन्हें सारा क़िस्सा बताया। 

तथागत बुद्ध ने भागिनेय्य संघरक्खित तथा अन्य सभी शिष्यों को समझाते हुए कहा, “शिष्यों ! यह चित्त बहुत ही चंचल है। जो व्यक्ति दूर-दूर तक जाने वाले, अकेले ही विचरण करने वाले चित्त को संयमित कर लेते हैं वे इंद्रियों और मृत्यु के शैतान “मार” के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और प्रसन्न जीवन बिताते हैं।
इस कहानी और धम्मपद का सार: जो व्यक्ति अपने चित्त को अपने क़ाबू में कर लेता है, वह इंद्रियों और मृत्यु (मार) के बंधन से छूटकर, अभय और जीते जी निर्वाण का सुख प्राप्त कर लेता है।


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